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मुझे कुछ कहना है दिलीप त्रिवेदी का पहला कविता-संकलन है I इनकी कविताओं में मानव जीवन के सभी रंग झलकते हैंI ज़िंदगी में जितने भी रंग हैं उन सभी को अपनी कविता के कैनवास पर छिड़क कर उन्होंने ये संकलन तैय्यार किया है. उनकी कविताओं में हर्ष है, विषाद है, प्रेम और रोमैन्स है, हास्य-व्यंग हैI राजनैतिक घटनाओं और कोविड -काल की भयावहता, इंसान की विवशता, और उससे उपजी आम आदमी की समस्याओं का वर्णन इस संकलन में उनकी कविताओं में है I पर इन सब अलग-अलग भावों को जो एक भाव एक सूत्र में पिरोता है, वो है उनका जीवन के प्रति अटल आशावाद I
दिलीप त्रिवेदी
© दिलीप त्रिवेदी, 2023
इस प्रकाशन का कोई भी भाग लेखक की पूर्व अनुमति के बिना (संक्षिप्त उद्धरण के मामले को छोड़कर) पुनः प्रस्तुत, फ़ोटोकॉपी सहित किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से वितरित, या प्रसारित, रिकॉर्डिंग, या अन्य इलेक्ट्रॉनिक या यांत्रिक़ तरीके से नहीं किया जा सकता है। आलोचनात्मक समीक्षाओं और कुछ अन्य गैर वाणिज्यिक प्रयगों की कॉपीराइट कानून द्वारा अनुमति है। अनुमति के अनुरोध के लिए प्रकाशक को नीचे दिए गए पते पर लिखें।
यह पुस्तक भारत से केवल प्रकाशकों या अधिकृत आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात की जा सकती है। यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो वह सिविल और आपराधिक अभियोजन के अंतर्गत आएगा ।
पेपरबैक आई एस बी एन: 978-81-19221-31-8
ईबुक आई एस बी एन: 978-81-19221-37-0
वेब पीडीऍफ़ आई एस बी एन: 978-81-19221-36-3
नोट: पुस्तक का संपादन और मुद्रण करते समय उचित सावधानी बरती गई है। अनजाने में हुई गलती की ज़िम्मेदारी न लेखक और न ही प्रकाशक की होगी।
पुस्तक के उपयोग से होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष परिणामी या आकस्मिक नुकसान के लिए प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे। बाध्यकारी त्रुटि, ग़लत प्रिंट, गुम पृष्ठ, आदि की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी प्रकाशक की होगी। ख़रीद की एक महीने के भीतर ही पुस्तक का (वही संस्करण/ पुनः मुद्रण) प्रतिस्थापन हो सकेगा।
भारत में मुद्रित और बाध्य
16Leaves
2/579, सिंगरवेलन स्ट्रीट
चिन्ना नीलांकारई
चेन्नई - 600 041
भारत
कॉल करें: 91-9940638999
© दिलीप त्रिवेदी, 2023
इस प्रकाशन का कोई भी भाग लेखक की पूर्व अनुमति के बिना (संक्षिप्त उद्धरण के मामले को छोड़कर) पुनः प्रस्तुत, फ़ोटोकॉपी सहित किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से वितरित, या प्रसारित, रिकॉर्डिंग, या अन्य इलेक्ट्रॉनिक या यांत्रिक़ तरीके से नहीं किया जा सकता है। आलोचनात्मक समीक्षाओं और कुछ अन्य गैर वाणिज्यिक प्रयगों की कॉपीराइट कानून द्वारा अनुमति है। अनुमति के अनुरोध के लिए प्रकाशक को नीचे दिए गए पते पर लिखें।
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यह पुस्तक भारत से केवल प्रकाशकों या अधिकृत आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात की जा सकती है। यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो वह सिविल और आपराधिक अभियोजन के अंतर्गत आएगा ।
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नोट: पुस्तक का संपादन और मुद्रण करते समय उचित सावधानी बरती गई है। अनजाने में हुई गलती की ज़िम्मेदारी न लेखक और न ही प्रकाशक की होगी।
पुस्तक के उपयोग से होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष परिणामी या आकस्मिक नुकसान के लिए प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे। बाध्यकारी त्रुटि, ग़लत प्रिंट, गुम पृष्ठ, आदि की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी प्रकाशक की होगी। ख़रीद की एक महीने के भीतर ही पुस्तक का (वही संस्करण/ पुनः मुद्रण) प्रतिस्थापन हो सकेगा।
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यूँ तो समय-समय पर मेरे सभी दोस्त और परिचित मुझे अपनी कविताओं को प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं पर मैंने अब तक इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया था। मैं उन सभी मित्रों और शुभचिंतकों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मुझे इस अभियान के लिए प्रेरित किया।
दो मित्रों का यहाँ पर ज़िक्र करना और उनका शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है। एक तो है मेरा स्कूल का सहपाठी, गौतम सरकार, जिसने मेरे मन के किसी कोने में छुपी, दबी इस ख़्वाहिश को माचिस लगा कर भड़काया और मुझे अपनी कविताओं को सबके सामने लाने पर आमादा किया; और दूसरे, मेरे ही स्कूल के मेरे सीनियर श्री अरुण रॉय जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास और लगन की कंपकंपाती लौ को अपनी मज़बूत हथेलियों से ढक कर महफ़ूज़ रखा, बुझने नहीं दिया। ये किताब अगर आज आपके हाथों में है तो इसका ज़्यादा श्रेय इन दो महानुभावों को जाता है।
इनके अलावा मै ख़ास तौर पर शुक्रगुज़ार हूँ श्री के. पी. एस. वर्मा साहब और श्रीमती सुषमा सक़्सेना जी का जिन्होंने बहुत धीरज के साथ इसे पढ़ा और अपने बेशक़ीमती मशवरे दे कर इसे बेहतर बनाने में मेरी अहम मदद की।
और मेरी शरीके-हयात रत्ना, जहाँ से मेरी हर बात शुरू होती है और वहीं पहुँच कर मुकम्मल होती है। मेरी हर कोशिश में उनका बेलौस साथ होता है और जिनकी मदद के बिना मेरा कोई काम पूरा नहीं होता।
अंत में मैं शुक्र गुज़ार हूँ, मेरे प्रकाशक 16Leaves और उनकी टीम का जिन्होंने ने इसे आप तक पहुँचाया। वर्ना ये गुमनामी के अंधेरे में ही खोयी रहतीं।
यूँ तो समय-समय पर मेरे सभी दोस्त और परिचित मुझे अपनी कविताओं को प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं पर मैंने अब तक इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया था। मैं उन सभी मित्रों और शुभचिंतकों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मुझे इस अभियान के लिए प्रेरित किया।
दो मित्रों का यहाँ पर ज़िक्र करना और उनका शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है। एक तो है मेरा स्कूल का सहपाठी, गौतम सरकार, जिसने मेरे मन के किसी कोने में छुपी, दबी इस ख़्वाहिश को माचिस लगा कर भड़काया और मुझे अपनी कविताओं को सबके सामने लाने पर आमादा किया; और दूसरे, मेरे ही स्कूल के मेरे सीनियर श्री अरुण रॉय जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास और लगन की कंपकंपाती लौ को अपनी मज़बूत हथेलियों से ढक कर महफ़ूज़ रखा, बुझने नहीं दिया। ये किताब अगर आज आपके हाथों में है तो इसका ज़्यादा श्रेय इन दो महानुभावों को जाता है।
इनके अलावा मै ख़ास तौर पर शुक्रगुज़ार हूँ श्री के. पी. एस. वर्मा साहब और श्रीमती सुषमा सक़्सेना जी का जिन्होंने बहुत धीरज के साथ इसे पढ़ा और अपने बेशक़ीमती मशवरे दे कर इसे बेहतर बनाने में मेरी अहम मदद की।
और मेरी शरीके-हयात रत्ना, जहाँ से मेरी हर बात शुरू होती है और वहीं पहुँच कर मुकम्मल होती है। मेरी हर कोशिश में उनका बेलौस साथ होता है और जिनकी मदद के बिना मेरा कोई काम पूरा नहीं होता।
अंत में मैं शुक्र गुज़ार हूँ, मेरे प्रकाशक 16Leaves और उनकी टीम का जिन्होंने ने इसे आप तक पहुँचाया। वर्ना ये गुमनामी के अंधेरे में ही खोयी रहतीं।
मुझे कुछ कहना है दिलीप त्रिवेदी का पहला कविता-संकलन है I इनकी कविताओं में मानव जीवन के सभी रंग झलकते हैंI ज़िंदगी में जितने भी रंग हैं उन सभी को अपनी कविता के कैनवास पर छिड़क कर उन्होंने ये संकलन तैय्यार किया है. उनकी कविताओं में हर्ष है, विषाद है, प्रेम और रोमैन्स है, हास्य-व्यंग हैI राजनैतिक घटनाओं और कोविड -काल की भयावहता, इंसान की विवशता, और उससे उपजी आम आदमी की समस्याओं का वर्णन इस संकलन में उनकी कविताओं में है I पर इन सब अलग-अलग भावों को जो एक भाव एक सूत्र में पिरोता है, वो है उनका जीवन के प्रति अटल आशावाद I
दिलीप त्रिवेदी
© दिलीप त्रिवेदी, 2023
इस प्रकाशन का कोई भी भाग लेखक की पूर्व अनुमति के बिना (संक्षिप्त उद्धरण के मामले को छोड़कर) पुनः प्रस्तुत, फ़ोटोकॉपी सहित किसी भी रूप में या किसी भी माध्यम से वितरित, या प्रसारित, रिकॉर्डिंग, या अन्य इलेक्ट्रॉनिक या यांत्रिक़ तरीके से नहीं किया जा सकता है। आलोचनात्मक समीक्षाओं और कुछ अन्य गैर वाणिज्यिक प्रयगों की कॉपीराइट कानून द्वारा अनुमति है। अनुमति के अनुरोध के लिए प्रकाशक को नीचे दिए गए पते पर लिखें।
यह पुस्तक भारत से केवल प्रकाशकों या अधिकृत आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात की जा सकती है। यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो वह सिविल और आपराधिक अभियोजन के अंतर्गत आएगा ।
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पुस्तक के उपयोग से होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष परिणामी या आकस्मिक नुकसान के लिए प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे। बाध्यकारी त्रुटि, ग़लत प्रिंट, गुम पृष्ठ, आदि की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी प्रकाशक की होगी। ख़रीद की एक महीने के भीतर ही पुस्तक का (वही संस्करण/ पुनः मुद्रण) प्रतिस्थापन हो सकेगा।
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यह पुस्तक भारत से केवल प्रकाशकों या अधिकृत आपूर्तिकर्ता द्वारा निर्यात की जा सकती है। यदि इस शर्त का उल्लंघन हुआ तो वह सिविल और आपराधिक अभियोजन के अंतर्गत आएगा ।
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पुस्तक के उपयोग से होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष परिणामी या आकस्मिक नुकसान के लिए प्रकाशक उत्तरदायी नहीं होंगे। बाध्यकारी त्रुटि, ग़लत प्रिंट, गुम पृष्ठ, आदि की सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी प्रकाशक की होगी। ख़रीद की एक महीने के भीतर ही पुस्तक का (वही संस्करण/ पुनः मुद्रण) प्रतिस्थापन हो सकेगा।
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यूँ तो समय-समय पर मेरे सभी दोस्त और परिचित मुझे अपनी कविताओं को प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं पर मैंने अब तक इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया था। मैं उन सभी मित्रों और शुभचिंतकों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मुझे इस अभियान के लिए प्रेरित किया।
दो मित्रों का यहाँ पर ज़िक्र करना और उनका शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है। एक तो है मेरा स्कूल का सहपाठी, गौतम सरकार, जिसने मेरे मन के किसी कोने में छुपी, दबी इस ख़्वाहिश को माचिस लगा कर भड़काया और मुझे अपनी कविताओं को सबके सामने लाने पर आमादा किया; और दूसरे, मेरे ही स्कूल के मेरे सीनियर श्री अरुण रॉय जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास और लगन की कंपकंपाती लौ को अपनी मज़बूत हथेलियों से ढक कर महफ़ूज़ रखा, बुझने नहीं दिया। ये किताब अगर आज आपके हाथों में है तो इसका ज़्यादा श्रेय इन दो महानुभावों को जाता है।
इनके अलावा मै ख़ास तौर पर शुक्रगुज़ार हूँ श्री के. पी. एस. वर्मा साहब और श्रीमती सुषमा सक़्सेना जी का जिन्होंने बहुत धीरज के साथ इसे पढ़ा और अपने बेशक़ीमती मशवरे दे कर इसे बेहतर बनाने में मेरी अहम मदद की।
और मेरी शरीके-हयात रत्ना, जहाँ से मेरी हर बात शुरू होती है और वहीं पहुँच कर मुकम्मल होती है। मेरी हर कोशिश में उनका बेलौस साथ होता है और जिनकी मदद के बिना मेरा कोई काम पूरा नहीं होता।
अंत में मैं शुक्र गुज़ार हूँ, मेरे प्रकाशक 16Leaves और उनकी टीम का जिन्होंने ने इसे आप तक पहुँचाया। वर्ना ये गुमनामी के अंधेरे में ही खोयी रहतीं।
यूँ तो समय-समय पर मेरे सभी दोस्त और परिचित मुझे अपनी कविताओं को प्रकाशित करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं पर मैंने अब तक इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया था। मैं उन सभी मित्रों और शुभचिंतकों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में मुझे इस अभियान के लिए प्रेरित किया।
दो मित्रों का यहाँ पर ज़िक्र करना और उनका शुक्रिया अदा करना ज़रूरी है। एक तो है मेरा स्कूल का सहपाठी, गौतम सरकार, जिसने मेरे मन के किसी कोने में छुपी, दबी इस ख़्वाहिश को माचिस लगा कर भड़काया और मुझे अपनी कविताओं को सबके सामने लाने पर आमादा किया; और दूसरे, मेरे ही स्कूल के मेरे सीनियर श्री अरुण रॉय जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास और लगन की कंपकंपाती लौ को अपनी मज़बूत हथेलियों से ढक कर महफ़ूज़ रखा, बुझने नहीं दिया। ये किताब अगर आज आपके हाथों में है तो इसका ज़्यादा श्रेय इन दो महानुभावों को जाता है।
इनके अलावा मै ख़ास तौर पर शुक्रगुज़ार हूँ श्री के. पी. एस. वर्मा साहब और श्रीमती सुषमा सक़्सेना जी का जिन्होंने बहुत धीरज के साथ इसे पढ़ा और अपने बेशक़ीमती मशवरे दे कर इसे बेहतर बनाने में मेरी अहम मदद की।
और मेरी शरीके-हयात रत्ना, जहाँ से मेरी हर बात शुरू होती है और वहीं पहुँच कर मुकम्मल होती है। मेरी हर कोशिश में उनका बेलौस साथ होता है और जिनकी मदद के बिना मेरा कोई काम पूरा नहीं होता।
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