Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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खिजां

हुई मुद्दत बहार को चमन में आए हुये,

है दिल में क्यूँ खिजां घर बसाये हुये।

खिजां = पतझड़

गुज़र गयी एक और शाम इंतज़ार में आख़िर,

ये दिल है के अब भी है आस लगाए हुये।

ये हसरतों का बोझ भी बहुत जानलेवा है,

हरेक इंसान जिसे है सीने से लगाए हुये।

रही न बाक़ी साक़ी से अब कोई उम्मीद,

बैठा हूँ ख़ाली जाम होंठों से लगाए हुये।

ये मोजिज़ा इश्क़ का है या नज़र का फ़रेब,

देखिये, चले आते हैं वो नज़ झुकाए हुये।

मोजिज़ा = चमत्कार

घरों की दीवारें पुख़्ता कर लो ‘दिलीप,’

हैं आँधियाँ आशियाने पे नज़र लगाए हुये।