Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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आईना

हर रोज़ की तरह जब दिन खिला,

और मैं सुबह आईने से मिला।

तो आईना खिलखिलाया, फिर मुस्कराया,

मुझ को पास बुलाया, और फुसफुसाया।

तुम भी कितने अजब हो,

बिल्कुल ही नासमझ हो,

या के एकदम नादान हो,

दुनिया से बिल्कुल अनजान हो।

वही चेहरा लिए रोज़ आते हो,

इसमें भला क्या नया पाते हो?

बस एक ही चेहरा है तुम्हारे पास?

अरे, कौन करेगा तुम्हारा विश्वास?

तुम्हें पता नहीं, दूसरा चेहरा है कितना ज़रूरी,

चलो, फ़ौरन करो ये कमी पूरी।

नहीं तो पीछे रह जाओगे

हाथ मलोगे, पछताओगे।

मैंने आइने से कहा-अरे। ये क्या माज़रा है?

कब से इस क़दर बदला तेरा नज़रिया है?

कहते हैं आईना हमेशा सच कहता है,

कम से कम किताबों में तो यही रहता है।

आइने ने मुझे देखा और धीरे से बोला,

तुम अपने हो इस लिए कहता हूँ,

वर्ना आज कल सच बोलते डरता हूँ।

सच की अब नहीं रह गयी गुंजाइश,

सभी आईनों से अब है ये फर्माइश,

वही बोलो जो चल रहा है,

वर्ना चुप रहो, इसी में भला है।

क्या करें, आईने भी अब बदल रहे हैं,

वे भी तो अब ज़माने के साथ जो चल रह हैं।