छांह न ढूँढो
नहीं जो राह में शजर तो छांह की इल्तिज़ा न करो,
हो खौ़फ धूप का तो सफर की इब्तिदा न करो।
शजर = पेड़, इल्तिज़ा = माँग, इब्तिदा = शुरुआत
मिलेंगे राह में कई हसीं-ओ-दिलफ़रेब मंज़र,
जो रुक गये तो आरज़ू-ए-मंज़िल की ख़ता न करो।
हसीं-ओ-दिलफ़रेब = सुंदर और मोहक मंज़र = दृश्य
आयें जो राह में मुश्किल-ओ-अजाब तुम पर,
करो मुक़बिला बढ़कर, खुदा-खुदा न करो।
नहीं कोई जंजीर जो रोक सके तुमको,
वहम है ये इसे दिल में रखा न करो।