तर्ज़-ए-ज़िंदगी
हमने माना के यहाँ ग़म के फ़साने बहुत हैं,
लुत्फ़-ए-गिरिया के दुनिया में बहाने बहुत हैं,
सिर्फ़ अश्क़ बहाने से नहीं कुछ भी हासिल,
गौर से देखो तो जीने के ठिकाने बहुत हैं ।
लुत्फ़-ए-गिरिया = रोने का सुख
दुनिया है ये फ़ानी है दो दिन की ज़िंदगानी,
कोई साज छेड़ो लबों पे हमारे तराने बहुत हैं,
क्या हुआ जो है रात काली, मायूस न हो,
है चाँद ओझल तो क्या सितारे तो बहुत हैं।
फ़ानी= नश्वर, फ़लक = आसमान
नहीं ज़रूरी है खुल के कहना हर बात दिल की,
आँखों से होती है बयान कुछ बातें दिल की,
ख़ामोशी की भी है इक ज़ुबान देखो,
वर्ना कहने को यूँ तो फ़साने बहुत हैं।