आज का चलन
ये किन गर्दिशों में मेरा वतन है,
कहें रात को दिन ये कैसा चलन है।
गर्दिश = विपत्ति, संकट, बुरे दिन
चैन-ओ-अमन की वो करता है बातें,
तर-ब-तर खून में जिसका पैराहन है।
पैराहन = पोशाक
लिखने चला जो मैं दास्ताँ-ए-दर्दे-दौरां,
छिन गई रौशनाई ज़ब्त मेरी कलम है।
दास्ताँ-ए-दर्दे-दौरां = इस दौर के दर्द की कहानी
करे ज़ुल्म को ज़ब्त गर इंसाँ तो जानो,
वो ज़िंदा नहीं वो तो ज़िंदा दफ़न है।
‘ज़ब्त‘ के दो मतलब हैं- १ छिन जाना, २ बर्दाश्त
लग गये सबके मुँह पर दहशत के ताले,
जहाँ देखिए अब अमन ही अमन है।
अमन = शांति
पसे-मस्लहत है यहाँ जिसको देखो,
होठों पे निस्बत दिल में जलन है।
पसे-मस्लहत = औपचारिकता के पीछे , मुखौटे के पीछे
निस्बत = प्यार, लगाव