Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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जाविदां कहानी

थी आरज़ू हमेशा, रहे जाविदां कहानी ,

सो मिट गयी लिखावट, बची रेत, बचा पानी।

जाविदां = जो हमेशा रहे, खत्म न हो

था बड़ा ग़ुरूर जिनको, ताक़त-ओ-कूवत पे अपनी,

हुई ख़ाक उनकी हस्ती, न रही कोई निशानी।

चली है आँधी ऐसी के दरख़्तों ने सर झुकाया,

थी ज़र्रे की ही ज़ुर्रत, जो आँधियों से ठानी।

फ़िज़ाओं में आग सी है, झुलस रही है बस्ती,

कोई फेंकता है शोले, कोई डालता है पानी।

खिलें जो फूल सारे तो है चमन मुकम्मिल,

एक गुल की परवरिश को नहीं कहते बाग़बानी।