Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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सुबह

जी हाँ, ये सुबह ही तो है,

झाँकती है,

पर्वत के पीछे से,

बादलों के नीचे से,

देती है दस्तक,

मकानों में, दुकानों में,

खेतों में, खलिहानों में,

पेड़ों को छूती है,

पत्तों को चूमती है,

नदियों में चमकती है,

बगीचों में दमकती है,

पंछियों में चहकती है,

जी हाँ, ये सुबह ही तो है।

संगीत बन लुभाती है,

बैलों की घंटियों की झंकार में,

गाय के ताज़े दूध की धार में,

छाछ के मथने की ‘च्वार-च्वार’ में,

किसान की पुकार में,

फ़सलों की बहार में,

जी हाँ, यह सुबह ही तो है।

बनती है हमारी जिंदगी का हिस्सा,

आती है मुन्ना, मुन्नी के बिस्तर में,

गुदगुदी बन प्यार से जगाती है,

‘स्कूल जाना है’ याद दिलाती है,

स्कूल के बस्ते में, गर्म नाश्ते में,

जल्दी-जल्दी इस्तरी होती

यूनिफ़ार्म में, स्कूल बस के हार्न में,

और, बस्ते के साथ पीछे बिन चप्पल दौड़ती

माओं के ओलम्पिक दौड़ के अभियान में,

जी हाँ, यह सुबह ही तो है।

समाई है,

मंदिर में कीर्तन की तानों में,

मस्जिद से आती अज़ानों में,

चर्च के घंटों में,

सुनाई देती है,

कारख़ानों के हूटर में,

अन्दर जाते

साइकिलों में, स्कूटर में,

भरती है ज़ायक़ा, हर दिन,

अख़बार की सुर्ख़ियों में,

चाय की चुस्कियों में,

जी हाँ, यह सुबह ही तो है।