Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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एक ख़्वाहिश

न मक़ाम चाहिए, न मुझे अंजाम चाहिये

बस तेरा जलवा-ए-नूर सुबहो-शाम चाहिये।

काबा-काशी भी न दे सके मुझे

ऐसा सुकूने-रूह-ओ-आराम चाहिए।

ज़माने की बदी से जो महफ़ूज़ रख सके

इस दिल को इक ऐसा निगहबान चाहिये।

बढ़ गयीं हैं इस क़दर ज़माने की तल्खियाँ

तेरे रहमो-करम का मुझे ईनाम चाहिये।

तीरो-तफ़ंग देख के शायर ने यूँ कहा

वहशियों की भीड़ में इक इंसान चाहिये।

तीरो-तफ़ंग = तीर और धनुष