गुज़रा ज़माना
गुज़रे जमाने को याद करता हूँ,
ज़िंदगी से यूँ मैं बात करता हूँ।
दोस्तों की इनायत रहे मुझ पर,
दुआ यही मैं दिन-रात करता हूँ।
है इक सहर शबे-अलम के उस तरफ़,
इस उम्मीद से रौशन मैं रात करता हूँ।
शबे- अलम = दुःख भरी रात
जब कोई बात दिल पे चोट कर जाये,
यूँ ही मुस्कुरा कर मैं बात करता हूँ।
जैसे गंगा में बहाया हो कोई दिया
मैं ये अशआर अपने पेश करता हूँ।