आँखों में जलन दिल में इक शोर है,
ये जो भोर है ये किस तरह की भोर है।
ख़ामोशी यूँ छाई है फ़िज़ाओँ में हर तरफ़,
अब है, तो यहाँ सिर्फ़ हवाओं का शोर है।
नहीं है काम, मजबूर बैठा है घर में वो,
और ज़माना कहता है, ये तो मुफ़्तख़ोर है।
नहीं दिखती बेबसी लोगों की, अब क्या करें,
पास की नज़र हमने सुना उनकी ज़रा कमज़ोर है।
हथेलियों से ढक लो इस दिए की लौ ‘दिलीप’,
चल रही हैं आंधियाँ, आजकल तूफ़ानों का दौर हैं।