Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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Notes

  

उम्मीद

काली रातों में रौशनी तलाश करता हूँ,

मैं इक लम्हे में ज़िंदगी तलाश करता हूँ।

देखी जो मैंने अपनों की बदलती नज़रें,

अब ग़ैरों में नज़दीकियाँ तलाश करता हूँ।

यूँ तो जो मिला मुस्कुराता हुआ ही मिला,

मैं तिरी नज़रों में नज़दीकियाँ तलाश करता हूँ।

बढ़ गयीं तारिकियाँ यूँ इस क़दर मेरी,

मैं एक नया आफ़ताब तलाश करता हूँ।

तारिकियाँ = अंधेरा, आफ़ताब = सूरज

ज़र्रे-ज़र्रे में है उसी की हस्ती का नूर,

मैं दैर-ओ-हरम में क्या तलाश करता हूँ।

दैर-ओ-हरम = मंदिर और मस्जिद

ज़िंदगी इक सराब के सिवा कुछ भी नहीं,

जानता हूँ, फिर भी क्या तलाश करता हूँ।

सराब = मृगतृष्णा