नेताजी फिर चले बाज़ार,
करने घोड़ों का व्यापार,
जाकर घोड़ों को फुसलाया,
मनभावन चारा दिखलाया,
घोड़े चारा देख ललचायें,
ज़ोर ज़ोर से पूँछ हिलायें,
टपक रही है मुँह से लार।
घोड़ों का मालिक घबराया,
रातों रात उन्हें उठवाया,
दूर देश में उन्हें छुपाया,
बाड़ों में ताले लगवाया,
हुई मगर सब जुगत बेकार।
घोड़े बाड़ा तोड़ के भागे,
नेता के सम्मुख हैं नाचे,
लो फिर बन गयी उनकी सरकार।
विरोधी गण करें चीत्कार,
न्यायालय है निर्विकार,
हुई प्रजातंत्र की जयजयकार,
राजनीति का यह व्यापार,
देख रही जनता लाचार।