Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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आलमे जुल्मत

आलमे जुल्मत है पर तस्सवुर में सहर रखता हूँ,

हैं राह में मंज़र लाखों, मंज़िल पे नज़र रखता हूँ।

आलमे जुल्मत = अंधेरे का समय, मंज़र = दृश्य

ख़ामोशी मजबूरी नहीं, मेरा शौक़-ए-तन्हाई है,

गुफ़्तार कम ही सही, बातों में असर रखता हूँ।

गुफ़्तार = बात-चीत

न समझ मुझको तू दीन-ओ-दुनिया से गाफ़िल,

बेख़ुदी लाख सही, ज़माने की ख़बर रखता हूँ।

गाफ़िल = बेख़बर, अंजान

शिकस्त पाई है मगर दिल शिकस्ता तो नहीं,

मिलेगी कल मंज़िल ये आस मगर रखता हूँ।

हो गयी ख़त्म जो रौशनाई तो ये कहा मैंने,

लिख़ सकूँ नाम तेरा इतना तो ख़ूने-जिगर रखता हूँ।