यादें
यादों के दरीचे से कुछ लम्हे चुराता हूँ,
कुछ भूले हुए नग़मे आज गुनगुनाता हूँ।
जिस्म पे पाबंदी, महदूद दायरे हैं,
ख़ाली, वीरान शामें यादों से सजाता हूँ।
महदूद = सीमित
बिछड़े जो मीत मन के राहे-ज़िंदगी में,
याद उनको करके मैं अश्क़ बहाता हूँ।
जो खो गया है उसपे रहा न कोई हक़,
जो पास है उसका मैं जश्न मनाता हूँ।
जिंदगी पे देखो यहाँ चलता है किसका ज़ोर,
नहीं बात भूलने की ये याद दिलाता हूँ।
ज़िंदगी ख़्वाबों का एक सिलसिला है,
इन तमाम ख़्वाबों को मैं दिल में बसाता हूँ