Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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पर तुम नहीं आयीं

रात है ख़ामोश, तारे हैं अलसाये से,

सड़कों पर चलती रौशनी के हुजूम,

थक कर धीमे हो गये हैं,

हैं सुस्त और भरमाये से।

उफ़क का चाँद, उदास चाँदनी और,

कमरे का अधखुला दरवाज़ा,

हैं सभी मुंतज़िर तुम्हारे,

पर तुम नहीं आयीं।

तुमने कहा था, तुम आओगी,

मेरे गीतों को मेरे सामने गुनगुनाओगी,

अपनी मुस्कराहट से बख़्शोगी,

मेरे गीतों को ईनाम,

और तुम्हारी शबनमी आँखें।

मेरे गीतों की किताब पर झुकी हुई,

बेसाख़्ता उठ कर,

मुझे देंगी नशीले, अनकहे पैग़ाम,

पर तुम नहीं आयीं।

तुम्हारे चहीते गुलाब के फूल,

लाल, सफेद, पीले और गुलाबी,

गुलदान में सजे, हैं इठलाते,

करते हैं मुझ पर तंज़।

और मोगरे के फूल जो मैं लाया था,

तुम्हारे बालों में लगाने के लिये,

अपनी ज़हरीली ख़ुशबू से,

करते हैं मेरी साँसों को बोझिल।

मैं बेकस और लाचार,

करता हूँ इंतज़ार,

नींद आए और तुम ख़्वाब में आओ,

मेरे गीतों को गुनगुनाओ।

मेरे गीतों को सजाओ,

अपनी मुस्कानों से,

शबनमी आँखों का जादू,

मेरे दिल पर चलाओ।