Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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शोला

शोला है तो भड़के ख़ामोश ज़ुबां क्यों है,

दबे-दबे होंठों से ये हक़ का बयाँ क्यों है।

आग अगर भड़की बस्ती तो जलाएगी,

उस पर ये सितम पूछें हवाओं में धुआँ क्यों है।

दीवारें इधर भी हैं, दीवारें उधर भी हैं,

टुकड़ों में बटा मेरा सारा ये जहाँ क्यों है।

बेगुनाही पे तुम्हारी शुबहा तो नहीं कोई,

कपड़ों पे तुम्हारे ये ख़ूँ का निशाँ क्यों है।

है आँधियों की साज़िश बस्तियाँ उजाड़ीं,

हैरां हूँ के आख़िर साबुत मेरा मकाँ क्यों है।