सुबह भी तो होगी
राख़ के ढेर में शोलों को बचाये रक्खा,
हसरतों को हमने यूँ सीने से लगाये रक्खा।
रात अंधेरी है जो, सुबह भी तो होगी,
इस उम्मीद में माहौल बनाये रक्खा।
राह तारीक़ थी और मंज़िल ओझल,
हमने राहों को चिरागों से सजाये रक्खा।
तारीक़ = अंधेरी
घर से निकले तो मुस्कान सजा ली लब पर,
ज़ख़्म जितने थे उन्हें दिल में छुपाये रक्खा।
राह में कई साथ छूटे, कई चेहरे रूठे,
उनकी यादों को मगर दिल में सजाये रक्खा।