Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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जुस्तजू

वक़्त की रेत पर तेरा निशाँ रहे, न रहे,

तवारीख़ के पन्नों पे तेरा बयां रहे, न रहे,

तू फिर भी इक मुकम्मल ज़र्रा-ए-कायनात है,

तेरा अफ़साना ज़माना, बुलंद ज़ुबां कहे, न कहे।

फैला बाज़ुओं को, जकड़ ले तूफ़ाँ इनमें,

कर ले आसमान मुट्ठी में, मोड़ हवाओं के रूख,

दरकिनार कर बेयक़ीनी, कर भरोसा ख़ुद पर,

बढ़ा क़दम आगे, कल ये जहां रहे,न रहे।

है राह पुरपेंच भी और पुरख़ार भी,

दूर है मंज़िल तेरी और है कड़ी धूप भी,

चलना है अकेला ही तुझको,

साथ तेरे कोई कारवाँ रहे, न रहे।

तेरी फ़ितरत है शाहीनी, परवाज़ है काम तेरा,

तू नहीं ज़मीं के लिए, है आसमां तेरी क़िस्मत,

ज़मीं के दरख़्तों पे तेरा आशियाँ रहे, न रहे।