Mujhe Kuch Kehna Hai
ISBN 9788119221370

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Notes

  

लम्हों का सफ़र

ज़िंदगी लम्हों का बसर ही नहीं,

एक जंग है सिर्फ़ सफ़र ही नहीं।

मुश्किलें खुद ब खुद हल हो जायें,

मेरे सज़दों में वो असर ही नहीं।

माना कि रात बेहद काली है,

ऐसा भी नहीं के अब सहर ही नहीं।

कुछ तो हवाओं की भी ख़ता होगी,

आग की वजह सिर्फ़ शरर ही नहीं।

शरर = चिंगारी

कम-ज़र्फ़ खुद को हकीम समझे है,

और मालूम इलाजे-दर्दे-सर ही नहीं।

कम-ज़र्फ़ = अयोग्य

शायरी में शामिल है खूने-जिग़र भी यारों,

ये खेल सिर्फ़ रदीफ़-ओ-बहर का ही नहीं।

रदीफ़-ओ-बहर = उर्दू ग़ज़ल की दो शर्तें